Mansi savita

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लेखनी प्रतियोगिता -11-Feb-2024

विषय दुख अपने सुख बेगाने
मुझको तो दुख अपने, सुख बेगाने लगते है
माना इन घड़ियों में रिश्ते पुराने लगते है
दुख दुख को झेला जिससे सुख के पल
अच्छे बन पाते
सुख की छांव में बैठ के हम अपने दुख को बिसराते
भूलते न हम दुख के पल को सुख को अपना न कह पाते
सीखा इतना दुख में मैने सुख को अब न सह पाते है
दुख के पल को झेला मैंने आज सुख का मेला है
बच्चे खुश है मेरे पर आज फिर बूढ़ा बाप अकेला है
पीड़ा में चिंतित व्याकुल अपने सहचर से कहता है
दुख को जीवन भर झेला पर सुख में आज पीड़ा है।।
मानसी सविता
कानपुर

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3 Comments

Mohammed urooj khan

13-Feb-2024 12:33 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Ajay Tiwari

12-Feb-2024 09:08 AM

Nice👍

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Gunjan Kamal

11-Feb-2024 01:58 PM

शानदार

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